रावण का चोर

चोर कहीं के निकल बाहर
हर बार घर में छुप जाता है
ला दे वो रावण हमें इधर
जो तू जलते जलते रख लाता है
तभी कहें ये मरता क्यों नहीं
हर साल जलाते हैं इसको
दशहरे में परोसे व्यंजन रावण को
तू चलते-चलते चख आता है
सुन बात ध्यान से मेरी अब तू
इस साल रावण से दूर ही रहना
ये उस अज्ञान में डूबता सूरज है
जो ढलते ढलते ढल जाता है
यह गांठ मार और बांध ले अब तू
इंसा है और राम बन
कर रावण निज हवन में स्वाहा
यह गलते गलते गल जाता है
नहीं जी उठता दोबारा फिर कभी
बस राम-राम में मिल जाता है