पीड़ा

इतनी पीड़ा दी क्यों तुमने
पुत्री ने माँ की टेर लगाई
सतयुग में भी माँ माँ करती
सीता धरती में जा समाई
तुमने यह कैसे सोच लिया माँ
कलयुग उस युग से बेहतर होगा
वहां जीते जी माँ की गोद मिल गई
यहां तो पुत्री मर कर ही वापस आई
माँ एक साधारण माली ने भी
स्थान परख निज पौध लगाई
क्यों स्वयं पुत्री प्रथावश दान में दे दी
ना हुई कदर और दी मुरझाई
वो कामधेनु और कल्पवृक्ष सी
सुंदर वधू रूप गई सजाई
निरे लालच में न दिखी लक्ष्मी
ला तेल छिड़ककर आग लगाई
इतनी पीड़ा दी क्यों तुमने